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आर्यावर्त वाणी विशेष लेख

मां ब्रह्मचारिणी का स्वरूप

नवरात्रि के दूसरे दिन मां ब्रह्मचारिणी की पूजा होती है। इनके दाहिने हाथ में 📿 जपमाला और बाएँ हाथ में 💧 कमंडल रहता है। सफेद वस्त्र धारण किए तपस्विनी स्वरूप में ये साधना, त्याग और संयम की प्रतीक मानी जाती हैं।

📖 पौराणिक कथा

पौराणिक मान्यता के अनुसार, माता पार्वती ने भगवान शिव को पति रूप में प्राप्त करने के लिए हजारों वर्षों तक कठोर तप किया। उन्होंने कई वर्षों तक केवल फल-फूल खाकर और फिर निर्जल रहकर तपस्या की। इसी तपस्विनी रूप को ब्रह्मचारिणी कहा गया है। इस कथा से हमें संयम, आस्था और धैर्य का महत्व समझ में आता है।

🌺 पूजन-विधि

1️⃣ प्रातः स्नान कर घर और पूजा स्थान को शुद्ध करें।
2️⃣ लकड़ी की चौकी पर लाल या पीले वस्त्र बिछाकर मां ब्रह्मचारिणी की प्रतिमा या चित्र स्थापित करें।
3️⃣ कलश स्थापना कर उसके समीप दीपक जलाएँ।
4️⃣ गंगाजल से आचमन कर संकल्प लें।
5️⃣ माता को 🌸 पुष्प, ✨ रोली, 🍚 अक्षत, धूप और दीप अर्पित करें।
6️⃣ 🍯 मिश्री, शक्कर और गुड़ का भोग अर्पित करें।
7️⃣ मंत्र का जाप करें – “ॐ देवी ब्रह्मचारिण्यै नमः”।
8️⃣ दुर्गा सप्तशती, देवी कवच अथवा ब्रह्मचारिणी स्तोत्र का पाठ करें।
9️⃣ 🔔 अंत में आरती कर भक्तों को प्रसाद वितरित करें।

🍯 भोग का महत्व

मां ब्रह्मचारिणी को मिश्री, शक्कर और शहद अर्पित करना अत्यंत शुभ माना गया है। इससे भक्त के जीवन में 🍬 मधुरता आती है और वह उत्तम स्वास्थ्य व दीर्घायु का आशीर्वाद प्राप्त करता है।

🙏 उपासना का महत्व

🌼 मां ब्रह्मचारिणी की पूजा से साधक को तप, संयम और धैर्य की प्राप्ति होती है।
🌼 विद्यार्थी और तपस्वियों के लिए यह दिन विशेष फलदायी माना गया है।
🌼 जीवन में मानसिक शांति, आत्मबल और दृढ़ संकल्प का संचार होता है।
🌼 मां की कृपा से आलस्य और नकारात्मक विचार दूर होते हैं।

🕉️ आज का शुभ मुहूर्त (23 सितम्बर 2025)

🕑 द्वितीया तिथि प्रारंभ : 22 सितम्बर, रात 07:52 बजे
🕑 द्वितीया तिथि समाप्त : 23 सितम्बर, शाम 05:48 बजे
🕑 पूजा का श्रेष्ठ समय : प्रातः 06:12 बजे से 08:45 बजे तक

नवरात्रि का दूसरा दिन हमें यह सिखाता है कि कठिनाइयों और चुनौतियों का सामना 🧘 तप, संयम और आस्था से किया जा सकता है। मां ब्रह्मचारिणी की उपासना से साधक के जीवन में शांति, संतुलन और आत्मबल का विकास होता है।

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