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आर्यावर्त वाणी | पटना | 28 अक्टूबर 2025,

पटना : सूर्योपासना के महापर्व छठ का चार दिवसीय अनुष्ठान मंगलवार की सुबह उदय हो रहे सूर्य को अर्घ्य देने के साथ संपन्न हो गया। आस्था, श्रद्धा और उल्लास के इस पावन पर्व पर राजधानी पटना समेत बिहार एवं पूर्वी उत्तर प्रदेश के विभिन्न जिलों में भव्य आयोजन देखने को मिले। सोमवार को अस्ताचलगामी और मंगलवार को उदीयमान सूर्य को अर्घ्य देने का यह शुभ क्रम पूरे विधि-विधान से पूरा हुआ।

नदियों, तालाबों से लेकर छतों तक छाई आस्था:

पटना में गंगा, पुनपुन, सोन और जिले की अन्य सहायक नदियों के घाटों पर तो श्रद्धालुओं का तांता लगा ही रहा, साथ ही शहर के तालाबों, पार्कों में बने अस्थायी घाटों, सोसायटी अपार्टमेंट्स के स्वीमिंग पूल और यहां तक कि घरों की छतों पर भी व्रतियों ने सूर्य देव की उपासना की। सभी घाट रंग-बिरंगी रोशनी और झालरों से सजे हुए थे, जिससे पूरे शहर में एक उत्सव का सा माहौल था।

पारंपरिक गीतों से गूंजे घाट:

इस दौरान घाटोंपर पारंपरिक छठ गीतों की गूंज सुनाई दी। शारदा सिंह के गीतों के अलावा, ‘उग हे सुरुजदेव अरघ के बेरिया’, ‘भूखली शारीरिया शीतल होई मनवा’ जैसे लोकप्रिय गीतों ने वातावरण को और भी अधिक भक्तिमय बना दिया। हजारों लोग इन गीतों पर थिरकते और झूमते हुए अर्घ्य देते नजर आए।

प्रमुख तीर्थ स्थलों पर उमड़ी अतुल्य भीड़:

छठ पर्व पर प्रदेश केकई प्रमुख तीर्थ स्थलों पर श्रद्धालुओं की record-breaking भीड़ उमड़ी।

✳️ देव (औरंगाबाद): प्रसिद्ध सूर्य मंदिर परिसर में लगभग 12 लाख से अधिक श्रद्धालुओं ने अर्घ्य दिया। यहां का मंदिर और ऐतिहासिक सूर्य कुंड विशेष आकर्षण का केंद्र रहा।
✳️ उलार (दुल्हिनबाजार): इस सूर्य मंदिर पर चार लाख से अधिक व्रतियों ने श्रद्धा निवेदित की।
✳️बेलाउर (भोजपुर): गंगा तट पर स्थित इस घाट पर दो लाख से अधिक लोग एकत्र हुए।
✳️नालंदा: बड़गांव और औंगारी में प्रत्येक स्थान पर लगभग एक-एक लाख श्रद्धालु उपस्थित रहे।

राज्यों की सीमाएं हुईं पार:

इस महापर्व ने राज्यों की सीमाओं को भी पार कर दिया। देव सूर्य मंदिर में बिहार के अलावा झारखंड, छत्तीसगढ़ और उत्तर प्रदेश से बड़ी संख्या में श्रद्धालु पहुंचे थे। वहीं, पटना के गंगा घाटों पर छपरा, वैशाली, सोनपुर, जहानाबाद और गयाजी जिलों के हजारों व्रती अर्घ्य दान करने पहुंचे थे।

36 घंटे के निर्जला व्रत के बाद पारण:

छठ व्रतियोंने लगभग 36 घंटे के कठोर निर्जला व्रत का पालन किया। अंतिम दिन उगते सूर्य को अर्घ्य देने के बाद व्रतियों ने गुड़ और अदरक ग्रहण करके इस कठिन अनुष्ठान का पारण किया, जिससे उनके कठिन तप और समर्पण का समापन हुआ।

प्रशासन द्वारा घाटों पर व्यापक सुरक्षा और सुविधाओं का प्रबंध किया गया था, जिसके चलते कहीं भी कोई अप्रिय घटना नहीं हुई। यह महापर्व एक बार फिर पर्यावरणीय शुद्धता और सामुदायिक सद्भाव की मिसाल पेश करते हुए संपन्न हुआ।

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