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आर्यावर्त वाणी विशेष लेख

मां चंद्रघंटा का स्वरूप

नवरात्रि के तीसरे दिन मां चंद्रघंटा की पूजा का विधान है। इनके मस्तक पर अर्धचंद्र के आकार की घंटी सदृश आभा रहती है, जिससे इनका नाम चंद्रघंटा पड़ा। मां के दस हाथ हैं और वे सिंह पर सवार रहती हैं। उनका स्वरूप शांति, साहस और वीरता का प्रतीक है।

👉पौराणिक कथा

कथा के अनुसार, जब असुरों ने पृथ्वी पर अत्याचार बढ़ा दिए, तब मां दुर्गा ने चंद्रघंटा का रूप धारण कर शत्रुओं का संहार किया। मां का यह रूप भक्तों को भयमुक्त करता है और उन्हें न्याय तथा धर्म के मार्ग पर चलने की प्रेरणा देता है।

👉पूजन-विधि

1️⃣ प्रातः स्नान के बाद पवित्र वस्त्र पहनें।
2️⃣ मां चंद्रघंटा की प्रतिमा या चित्र को सिंहासन पर स्थापित करें।
3️⃣ कलश स्थापना कर उसके पास घी का दीपक जलाएँ।
4️⃣ गंगाजल से शुद्धिकरण करें और संकल्प लें।
5️⃣ मां को सुगंधित धूप,  फूल, ✨ रोली और  अक्षत अर्पित करें।
6️⃣ दूध और खीर का भोग लगाएँ, इसे अत्यंत शुभ माना जाता है।
7️⃣ मंत्र का जाप करें – “ॐ देवी चंद्रघंटायै नमः”।
8️⃣ दुर्गा सप्तशती या देवी स्तुति का पाठ करें।
9️⃣  अंत में आरती कर प्रसाद वितरित करें।

👉भोग का महत्व

मां चंद्रघंटा को दूध से बनी वस्तुएँ विशेष प्रिय हैं। खीर का भोग लगाने से साधक के जीवन में सुख, समृद्धि और शांति आती है।

👉उपासना का महत्व

✳️मां चंद्रघंटा की पूजा से भय, रोग और बाधाएँ दूर होती हैं।
✳️साधक को साहस, वीरता और आत्मविश्वास प्राप्त होता है।
✳️पारिवारिक जीवन में सौहार्द और शांति का संचार होता है।
✳️मां की कृपा से शत्रु पर विजय और धर्म की रक्षा का बल मिलता है।

👉 आज का शुभ मुहूर्त (24 सितम्बर 2025)

✳️तृतीया तिथि प्रारंभ : 23 सितम्बर, शाम 05:48 बजे
✳️तृतीया तिथि समाप्त : 24 सितम्बर, दोपहर 03:46 बजे
✳️पूजा का श्रेष्ठ समय : प्रातः 06:13 बजे से 09:02 बजे तक

नवरात्रि का तीसरा दिन हमें साहस और निर्भयता का संदेश देता है। मां चंद्रघंटा की उपासना से साधक जीवन की कठिनाइयों को सहजता से पार कर पाता है और आत्मबल के साथ धर्म के मार्ग पर अग्रसर होता है।

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