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आर्यावर्त वाणी विशेष लेख

मां कात्यायनी का स्वरूप

नवरात्रि के छठे दिन मां कात्यायनी की पूजा होती है। मां का स्वरूप अत्यंत तेजस्वी और वीरता से परिपूर्ण है। ये सिंह पर सवार रहती हैं और इनके चार हाथ हैं – दाहिने हाथ में वरमुद्रा और अभयमुद्रा, तथा बाएँ हाथ में तलवार और कमल। मां कात्यायनी को महिषासुरमर्दिनी भी कहा जाता है क्योंकि इन्होंने ही महिषासुर का वध किया था।

👉 पौराणिक कथा

ऋषि कात्यायन की तपस्या से प्रसन्न होकर आदिशक्ति ने उनके घर पुत्री रूप में जन्म लिया, इसलिए इन्हें कात्यायनी कहा जाता है। कथा के अनुसार, देवताओं के आह्वान पर मां कात्यायनी ने महिषासुर का वध कर देवताओं को अत्याचार से मुक्त किया। इसलिए मां का यह रूप शौर्य और धर्म की रक्षा का प्रतीक है।

👉 पूजन-विधि

1️⃣ प्रातः स्नान कर पवित्र वस्त्र धारण करें।
2️⃣ मां कात्यायनी की प्रतिमा या चित्र को स्थापित करें।
3️⃣ कलश स्थापना कर घी का दीपक जलाएँ।
4️⃣ गंगाजल से शुद्धिकरण कर संकल्प लें।
5️⃣ मां को 🌹लाल फूल और सुगंधित धूप अर्पित करें।
6️⃣ शहद का भोग लगाएँ।
7️⃣ मंत्र का जाप करें – “ॐ देवी कात्यायन्यै नमः”।
8️⃣ दुर्गा सप्तशती या देवी स्तुति का पाठ करें।
9️⃣ अंत में आरती कर प्रसाद वितरित करें।

👉भोग का महत्व

मां कात्यायनी को शहद का भोग अत्यंत प्रिय है। इससे साधक को तेज, बल और आकर्षण की प्राप्ति होती है।

👉उपासना का महत्व

✳️मां कात्यायनी की पूजा से शत्रु पर विजय और संकटों से मुक्ति मिलती है।
✳️ विवाह में आने वाली बाधाएँ दूर होती हैं और योग्य जीवनसाथी की प्राप्ति होती है।
✳️ साधक को साहस, शक्ति और आत्मविश्वास मिलता है।
✳️मां की कृपा से रोग और दुःख का नाश होता है।

👉आज का शुभ मुहूर्त (27 सितम्बर 2025)

✳️ षष्ठी तिथि प्रारंभ : 26 सितम्बर, 12:10 बजे
✳️षष्ठी तिथि समाप्त : 27 सितम्बर, सुबह 10:19 बजे
✳️पूजा का श्रेष्ठ समय : प्रातः 06:14 बजे से 08:59 बजे तक

नवरात्रि का छठा दिन शक्ति और विजय का प्रतीक है। मां कात्यायनी की उपासना से साधक के जीवन में साहस, आत्मबल और विजय की प्राप्ति होती है। मां की कृपा से सभी प्रकार की बाधाएँ और कष्ट दूर हो जाते हैं।

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