आर्यावर्त वाणी |पटना | 02नवम्बर 2025,
पटना: बिहार विधानसभा चुनाव 2025 के बीच एक बार फिर हिंसा की काली छाया लोकतंत्र के पर्व पर मंडराने लगी है। चुनावी रंजिश, जातीय तनाव और स्थानीय दबंगई की राजनीति के बीच हाल के दिनों में राज्य के कई हिस्सों से हिंसक घटनाएँ सामने आई हैं। मोकामा, गयाजी (टेकारी) और दरभंगा जैसी घटनाओं ने चुनाव की निष्पक्षता पर गंभीर सवाल खड़े कर दिए हैं।
मोकामा में दुलारचंद की हत्या से बढ़ा तनाव
मोकामा विधानसभा क्षेत्र में एनडीए समर्थक नेता दुलारचंद यादव की हत्या ने पूरे इलाके में सनसनी फैला दी। बताया जाता है कि वे अपने समर्थकों के साथ प्रचार में निकले थे, तभी गोलीबारी में उनकी मौत हो गई। इस घटना ने न केवल स्थानीय स्तर पर जातीय तनाव बढ़ाया, बल्कि प्रशासन की निष्क्रियता पर भी सवाल उठाए।
घटना के बाद चुनाव आयोग ने संबंधित अधिकारियों से रिपोर्ट तलब की है और संवेदनशील इलाकों में अतिरिक्त पुलिस बल की तैनाती के निर्देश दिए हैं।
टेकारी में एनडीए प्रत्याशी डॉ. अनिल कुमार पर हमला
गयाजी जिले के टेकारी विधानसभा क्षेत्र में चुनाव प्रचार के दौरान एनडीए प्रत्याशी और निवर्तमान विधायक डॉ. अनिल कुमार के काफिले पर जानलेवा हमला हुआ।हमले में कई वाहन क्षतिग्रस्त हुए और प्रत्याशी सहित कुछ कार्यकर्ता घायल हो गए। पुलिस ने मौके से नौ आरोपियों को गिरफ्तार किया है। घटना के बाद क्षेत्र में भारी पुलिस बल तैनात कर स्थिति को नियंत्रित किया गया है।
विश्लेषकों का मानना है कि यह हमला टेकारी में बढ़ती राजनीतिक प्रतिस्पर्धा और जातीय समीकरणों से उपजी नाराज़गी का परिणाम है।
दरभंगा में लाइव टीवी डिबेट बनी रणक्षेत्र
दरभंगा में एक स्थानीय टीवी चैनल पर चल रहे लाइव चुनावी डिबेट के दौरान विधायक संजय सरावगी के समर्थकों और विपक्षी कार्यकर्ताओं के बीच हिंसक झड़प हो गई। घटना का वीडियो सोशल मीडिया पर वायरल हो गया, जिसमें बहस के दौरान कुर्सियाँ फेंकते और मारपीट करते लोग नज़र आए। यह पहली बार है जब बिहार चुनाव प्रचार के दौरान मीडिया मंच ही हिंसा का अखाड़ा बन गया। घटना की व्यापक निंदा करते हुए पत्रकार संगठनों ने चुनाव आयोग से सुरक्षा व्यवस्था बढ़ाने की मांग की है।
लोकतंत्र पर सवाल और आयोग की सख्ती
तीनों घटनाएँ इस बात का संकेत हैं कि बिहार की राजनीति में हिंसा का साया अब भी पूरी तरह खत्म नहीं हुआ है। चुनाव आयोग ने इन मामलों को गंभीरता से लेते हुए प्रभावित जिलों के अधिकारियों से विस्तृत रिपोर्ट मांगी है। हालांकि पुलिस ने कई जगह त्वरित कार्रवाई की है, लेकिन सवाल अब भी यही है — क्या चुनावी हिंसा पर पूर्ण विराम संभव है?
बदलता बिहार और पुरानी प्रवृत्तियाँ
राजनीतिक विश्लेषकों का कहना है कि बिहार में हर चुनाव से पहले हिंसा और जातीय उकसावे की घटनाएँ एक ‘दुर्भाग्यपूर्ण परंपरा’ बन चुकी हैं। मोकामा जैसे इलाकों में अपराध और राजनीति का पुराना गठजोड़, टेकारी में स्थानीय गुटबाज़ी, और दरभंगा में मीडिया मंच तक फैली नफ़रत ये सब दर्शाते हैं कि लोकतंत्र केवल मतपत्रों से नहीं, बल्कि संयम और कानून के पालन से मज़बूत होता है।
बिहार को आज ऐसे राजनीतिक संस्कार की आवश्यकता है जहाँ मत और मतभेद के बीच हिंसा की कोई जगह न हो।
चुनाव आयोग और प्रशासन को न केवल घटनाओं की जांच करनी चाहिए, बल्कि यह सुनिश्चित करना होगा कि आने वाले मतदान चरणों में मतदाता भयमुक्त होकर मतदान कर सकें।