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आर्यावर्त वाणी | नई दिल्ली | 07नवम्बर 2025

नई दिल्ली: भारत के राष्ट्रगीत ‘वंदे मातरम’ के 150 वर्ष पूरे होने के अवसर पर आज देशभर में विशेष कार्यक्रमों का आयोजन हुआ। प्रधानमंत्री नरेन्द्र मोदी ने इस मौके पर नई दिल्ली में आयोजित मुख्य समारोह में स्मारक डाक टिकट और स्मारक सिक्का जारी कर वर्षभर चलने वाले समारोहों की शुरुआत की।

प्रधानमंत्री ने कहा कि “वंदे मातरम सिर्फ एक गीत नहीं, बल्कि यह भारत माता की आराधना और स्वतंत्रता संग्राम की प्रेरणा का शाश्वत प्रतीक है।”

🔶 ऐतिहासिक पड़ाव

1875 में बंकिमचंद्र चट्टोपाध्याय द्वारा रचित इस गीत ने आज़ादी के आंदोलन के दौरान देशभक्ति का स्वर जगाया था। 1905 के बंग-भंग आंदोलन से लेकर स्वतंत्रता संग्राम के अंतिम चरण तक, यह गीत जन-आंदोलनों की प्रेरणा बना रहा। 1950 में इसे राष्ट्रगीत का दर्जा प्राप्त हुआ।

🔶 वर्षगांठ पर देशभर में आयोजन

दिल्ली के अलावा कई राज्यों में सामूहिक गायन और सांस्कृतिक कार्यक्रम हुए। दक्षिण रेलवे के त्रिची मंडल में 1100 से अधिक लोगों ने सामूहिक रूप से “वंदे मातरम” गाकर रिकॉर्ड बनाया।

उत्तर प्रदेश के मुख्यमंत्री योगी आदित्यनाथ ने लखनऊ में आयोजित कार्यक्रम में कहा कि “वंदे मातरम ने आज़ादी की भावना को जगाया और आज भी वही ऊर्जा देश के मार्गदर्शन में काम कर रही है।”

इस अवसर पर विभिन्न स्कूलों और कॉलेजों में देशभक्ति रैलियाँ एवं वंदे मातरम प्रतियोगिताएँ भी आयोजित की गईं।


🔶 गीत को लेकर उठा राजनीतिक विवाद

समारोह की गरिमा के बीच राजनीतिक हलकों में ‘वंदे मातरम’ एक बार फिर चर्चा का विषय बन गया। प्रधानमंत्री मोदी ने कहा कि 1937 में गीत के कुछ मूल अंतरे हटा दिए गए, जिससे इसकी मूल भावना में बदलाव आया। इस पर कांग्रेस अध्यक्ष मल्लिकार्जुन खड़गे ने पलटवार करते हुए कहा कि भाजपा और आरएसएस स्वयं इस गीत को अपने आयोजनों में शामिल नहीं करते, इसलिए दूसरों को राष्ट्रभक्ति का प्रमाणपत्र देना उचित नहीं है।

कुछ संगठनों ने यह भी कहा कि गीत के कुछ अंश धार्मिक प्रतीकों से जुड़े हैं, जिससे कुछ समुदायों को आपत्ति रही है। हालांकि अधिकांश राजनीतिक दलों और सामाजिक संगठनों ने इसे भारत की सांस्कृतिक एकता का प्रतीक बताते हुए सम्मान देने की अपील की है।

🔶 जनभावना और प्रतीक

आज भी “वंदे मातरम” जनमानस में देशभक्ति, मातृभूमि और राष्ट्रीय एकता का प्रतीक बना हुआ है। स्वतंत्रता संग्राम के नारे से लेकर आधुनिक भारत की पहचान तक, इस गीत ने हर पीढ़ी को जोड़ने का कार्य किया है।150 वर्षों बाद भी यह गीत उतना ही प्रासंगिक है जितना स्वतंत्रता आंदोलन के दिनों में था। वंदे मातरम अब केवल एक ऐतिहासिक धरोहर नहीं, बल्कि भारतीय चेतना की निरंतर धड़कन है जिसमें गर्व भी है और विविधता पर संवाद का अवसर भी।

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