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आर्यावर्त वाणी | गयाजी | 20 सितंबर 2025


गयाजी जिले के खिजरसराय प्रखण्ड के पंचमहला गाँव में एक परिवार पिछले 17 वर्षों से ऐसी त्रासदी झेल रहा है, जिसे सुनकर कोई भी द्रवित हो जाए। इस परिवार का इकलौता बेटा जन्म से ही विकलांग है। उम्र 17 वर्ष हो चुकी है, लेकिन बच्चा अब भी बिस्तर पर पड़ा रहता है। न उठ सकता है, न बैठ सकता है, न ही बोल सकता है, माँ-बाप की नजरों से माने तो यह बेटा अब एक जिंदा लाश बन गया है।
परिवार की आर्थिक स्थिति बेहद कमजोर है। बच्चे की माँ रेणु कुमारी पंजाब नेशनल बैंक का सीएसपी (कस्टमर सर्विस प्वाइंट) चलाकर जैसे-तैसे घर का खर्च उठाती हैं। पिता मनोज कुमार छोटे-मोटे काम करके सहयोग करते हैं। परिवार में दो बेटियाँ भी हैं, जिनके भविष्य की चिंता के साथ-साथ विकलांग बेटे की देखभाल का दायित्व भी इन्हीं पर है।


रेणु कुमारी बताती हैं कि बेटे की देखभाल बेहद कठिन और महँगी हो चुकी है। “सिर्फ डायपर पर ही महीने के करीब दो हजार रुपए खर्च हो जाते हैं। इसके इलाज में लाखों खर्च कर दिए, लेकिन स्थिति जस की तस बनी हुई है। सरकार की ओर से अब तक हमें कोई मदद नहीं मिली। वे आँसू भरे शब्दों में कहती है कि विकलांगता पेंशन के लिए आवेदन किया था, पर आधार कार्ड न होने के कारण आज तक नहीं मिल पाया।

मनोज कुमार अपनी बेबसी व्यक्त करते हुए बताते हैं कि बेटे का आधार कार्ड बनवाने के लिए वे कई बार सरकारी दफ्तरों के चक्कर लगा चुके हैं। लेकिन हर बार बच्चे का फिंगर प्रिंट न आने के कारण आवेदन रिजेक्ट हो जाता है। वे कहते हैं “आखिरकार थक-हारकर हमने इसे नियति पर छोड़ दिया। अब बेटा बड़ा हो गया है, उसे अब कहीं ले जाना भी बहुत मुश्किल हो गया है।”


यह परिवार सिर्फ अपनी तकलीफ नहीं झेल रहा, बल्कि यह कहानी हमारी व्यवस्था की खामियों को भी उजागर करती है। सरकार की सामाजिक सुरक्षा योजनाएँ अक्सर कागजों और नारों तक ही सीमित रह जाती हैं। जिन जरूरतमंद लोगों तक इन योजनाओं का लाभ पहुँचना चाहिए, वे आधार जैसी तकनीकी अड़चनों में उलझ कर रह जाते हैं।
आज इस परिवार की सबसे बड़ी उम्मीद है कि सरकार और प्रशासन उनकी व्यथा को सुने और तत्काल मदद दे। विकलांगता पेंशन जैसी छोटी-सी सहायता भी उनके लिए जीवनरेखा साबित हो सकती है।


आर्यावर्त वाणी की अपील है कि प्रशासन इस मामले को संज्ञान में ले और इस पीड़ित परिवार को न्याय दिलाए। यह सिर्फ एक परिवार की समस्या नहीं, बल्कि पूरे समाज और शासन की संवेदनशीलता की परीक्षा है।

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