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आर्यावर्त वाणी विशेष लेख

✨ मां स्कंदमाता का स्वरूप

नवरात्रि के पाँचवें दिन मां स्कंदमाता की पूजा का विधान है। मां की गोद में बालरूप कुमार कार्तिकेय (स्कंद) विराजमान रहते हैं। मां का स्वरूप अत्यंत शांत, सौम्य और दिव्य आभा से युक्त है। ये सिंह पर सवार रहती हैं और इनके चार हाथ हैं। मां को भक्तों की रक्षा करने वाली और संतान सुख प्रदान करने वाली देवी माना जाता है।

👉 पौराणिक कथा

देवी पुराण के अनुसार, असुरों से देवताओं की रक्षा के लिए मां दुर्गा ने स्कंद (कार्तिकेय) को उत्पन्न किया। मां स्कंदमाता अपने पुत्र के साथ ही भक्तों को आशीर्वाद देती हैं। इनके पूजन से न केवल मोक्ष की प्राप्ति होती है, बल्कि परिवार में सुख-शांति और संतान की उन्नति भी होती है।

👉पूजन-विधि

1️⃣ प्रातः स्नान कर शुद्ध वस्त्र धारण करें।
2️⃣ मां स्कंदमाता की प्रतिमा या चित्र को स्थापित करें।
3️⃣ कलश स्थापना कर दीपक जलाएँ।
4️⃣ गंगाजल से शुद्धिकरण कर संकल्प लें।
5️⃣ मां को 🌼 पीले फूल अर्पित करें।
6️⃣ केले और गुड़ का भोग लगाएँ।
7️⃣ मंत्र का जाप करें – “ॐ देवी स्कन्दमातायै नमः”।
8️⃣ दुर्गा सप्तशती या देवी स्तोत्र का पाठ करें।
9️⃣ 🌹 अंत में आरती कर प्रसाद वितरित करें।

👉भोग का महत्व

मां स्कंदमाता को केले का भोग विशेष प्रिय है। इसे अर्पित करने से संतान सुख की प्राप्ति होती है और परिवार में समृद्धि आती है।

👉उपासना का महत्व

✳️मां स्कंदमाता की पूजा से संतान को दीर्घायु और उत्तम स्वास्थ्य मिलता है।
✳️भक्त को भक्ति, शांति और वैराग्य की प्राप्ति होती है।

✳️जीवन के क्लेश, दुःख और रोग दूर होते हैं।
✳️ मां की कृपा से परिवार में सुख-समृद्धि और शांति बनी रहती है।

👉 आज का शुभ मुहूर्त (26 सितम्बर 2025)

✳️पंचमी तिथि प्रारंभ : 25 सितम्बर, दोपहर 01:56 बजे
✳️पंचमी तिथि समाप्त : 26 सितम्बर, 12:10 बजे
✳️पूजा का श्रेष्ठ समय : प्रातः 06:14 बजे से 09:05 बजे तक

षनवरात्रि का पाँचवाँ दिन मातृत्व और वात्सल्य का प्रतीक है। मां स्कंदमाता की उपासना से भक्तों को संतान सुख, समृद्धि और मोक्ष का आशीर्वाद प्राप्त होता है। मां की कृपा से परिवार में सुख और सौभाग्य की वृद्धि होती है।

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