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आर्यावर्त वाणी विशेष लेख

मां सिद्धिदात्री का स्वरूप

नवरात्रि के नवें और अंतिम दिन मां सिद्धिदात्री की पूजा का विधान है। वे कमलासन पर विराजमान रहती हैं और सिंह पर भी सवारी करती हैं। उनके चार हाथ हैं – एक में चक्र, दूसरे में गदा, तीसरे में शंख और चौथे में कमल। मां सिद्धिदात्री को सभी प्रकार की सिद्धियों की दात्री माना जाता है।

👉पौराणिक कथा

देवी भागवत पुराण के अनुसार, मां सिद्धिदात्री ही वह शक्ति हैं जिन्होंने ब्रह्मा, विष्णु और महेश को उनकी शक्तियाँ प्रदान कीं। भगवान शिव ने भी इन्हीं की कृपा से अर्धनारीश्वर स्वरूप धारण किया। मां सिद्धिदात्री को सिद्धियों और अलौकिक शक्तियों की अधिष्ठात्री देवी कहा जाता है।

👉 पूजन-विधि

1️⃣ प्रातः स्नान कर पवित्र वस्त्र धारण करें।
2️⃣ मां सिद्धिदात्री की प्रतिमा या चित्र को स्थापित करें।
3️⃣ कलश स्थापना कर दीपक और धूप जलाएँ।
4️⃣ गंगाजल से शुद्धिकरण कर संकल्प लें।
5️⃣ मां को 🌹लाल और🌼पीले फूल अर्पित करें।
6️⃣ तिल और खजूर का भोग लगाएँ।
7️⃣ मंत्र का जाप करें – “ॐ देवी सिद्धिदात्र्यै नमः”।
8️⃣ दुर्गा सप्तशती, सिद्धिदात्री स्तोत्र या देवी कवच का पाठ करें।
9️⃣ अंत में आरती कर प्रसाद वितरित करें।

👉भोग का महत्व

मां सिद्धिदात्री को तिल और खजूर का भोग विशेष प्रिय है। इसे अर्पित करने से भक्त को आयु, स्वास्थ्य और धन की वृद्धि होती है।

👉उपासना का महत्व

✳️ मां सिद्धिदात्री की पूजा से साधक को सभी प्रकार की सिद्धियों की प्राप्ति होती है।
✳️ भक्त के जीवन से भय और रोग दूर होते हैं।
✳️ आध्यात्मिक उन्नति और आत्मज्ञान की प्राप्ति होती है।
✳️ मां की कृपा से साधक का जीवन सफल और सुखमय बनता है।

👉आज का शुभ मुहूर्त (30 सितम्बर 2025)

✳️ नवमी तिथि प्रारंभ : 29 सितम्बर, सुबह 06:50 बजे
✳️ नवमी तिथि समाप्त : 30 सितम्बर, सुबह 05:14 बजे
✳️पूजा का श्रेष्ठ समय : प्रातः 06:16 बजे से 09:00 बजे तक

नवरात्रि का नवां दिन सिद्धि और सफलता का प्रतीक है। मां सिद्धिदात्री की उपासना से भक्त को समस्त सिद्धियाँ प्राप्त होती हैं और जीवन में सुख, शांति और समृद्धि का वास होता है।

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