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रिपोर्ट: आर्यावर्त वाणी संवाददाता | 29 अक्टूबर 2025


आंध्र प्रदेश के काकीनाडा तट से टकराया चक्रवाती तूफान “मंथा” (Cyclone Montha) सिर्फ एक मौसमीय घटना नहीं, बल्कि भारत के बदलते जलवायु संतुलन की एक नई चेतावनी बनकर सामने आया है। 90 से 110 किमी प्रति घंटे की रफ्तार से चली हवाओं ने जहां हजारों घरों को प्रभावित किया, वहीं इसने यह भी दिखाया कि हमारी तटीय तैयारियों में अभी भी बहुत कुछ सुधार की आवश्यकता है।


तूफान की वैज्ञानिक पृष्ठभूमि

‘मंथा’ का उद्गम बंगाल की खाड़ी के दक्षिण-पूर्वी हिस्से में 25 अक्टूबर को हुआ। समुद्र का तापमान उस समय सामान्य से लगभग 1.5 डिग्री सेल्सियस अधिक था — और यही ऊष्मा ऊर्जा इस चक्रवात के तीव्र रूप लेने का प्रमुख कारण बनी। मौसम वैज्ञानिकों के अनुसार, समुद्र का बढ़ता तापमान और जलवायु परिवर्तन ऐसे तूफानों की तीव्रता को और बढ़ा रहा है।

“यदि यही रुझान जारी रहा तो आने वाले वर्षों में बंगाल की खाड़ी में Category-4 स्तर के चक्रवात भी आम हो सकते हैं।” — आईएमडी विशेषज्ञ, विशाखापत्तनम केंद्र


प्रशासनिक तैयारी और वास्तविकता

राज्य सरकार ने दावा किया कि उसने हजारों लोगों को पहले से ही सुरक्षित स्थानों पर पहुंचा दिया। लेकिन ज़मीनी हकीकत यह है कि कई तटीय गांवों में राहत टीमों के पहुँचने में देरी हुई।
गुन्टूर, ईस्ट गोडावरी और कृष्णा जिलों में कई राहत शिविरों में पर्याप्त भोजन, स्वच्छ पानी और दवा की कमी की शिकायतें मिलीं। हालांकि एनडीआरएफ की त्वरित तैनाती ने जानमाल के बड़े नुकसान को टाल दिया, लेकिन बिजली और संचार व्यवस्था की विफलता ने राहत कार्यों को मुश्किल बना दिया।

“हमने पहले कभी ऐसा तूफान नहीं देखा। चार दिन से बिजली नहीं है, घर की छत उड़ गई।” — स्थानीय निवासी, काकीनाडा


आर्थिक प्रभाव — फसलों और मछुआरों पर भारी मार

तूफान मंथा ने सिर्फ घर नहीं गिराए, बल्कि किसानों की मेहनत भी बहा दी।

  • लगभग 38,000 हेक्टेयर फसलें नष्ट।
  • धान, केला और सब्जी उत्पादन पर गहरा असर।
  • तटीय इलाकों के हजारों मछुआरे समुद्र में न जा पाने से बेरोजगार।
    राज्य सरकार ने फसल क्षति सर्वेक्षण शुरू किया है, परंतु राहत राशि मिलने में हफ्तों लग सकते हैं।

जलवायु परिवर्तन का बड़ा संदर्भ

पिछले 10 वर्षों में भारत के पूर्वी तट पर औसतन हर साल 5 से 6 प्रमुख चक्रवात आ रहे हैं — जो 1990 के दशक की तुलना में दोगुना है।
मौसम विशेषज्ञ मानते हैं कि “मंथा” ने यह साफ कर दिया है कि अब चक्रवात सिर्फ मौसमी आपदा नहीं, बल्कि दीर्घकालिक जलवायु संकट का हिस्सा बन चुके हैं।

संयुक्त राष्ट्र की नवीनतम रिपोर्ट के अनुसार, बंगाल की खाड़ी दुनिया का दूसरा सबसे संवेदनशील समुद्री क्षेत्र बन चुका है, जहां समुद्र-स्तर में वृद्धि और तापमान बढ़ने से तूफानों की आवृत्ति लगातार बढ़ रही है।


सीख और नीति की आवश्यकता

  1. तटीय आपदा प्रबंधन की पुनर्समीक्षा — केवल राहत नहीं, बल्कि दीर्घकालिक पुनर्वास नीति जरूरी।
  2. जलवायु अनुकूल खेती को बढ़ावा — ऐसे फसलों का चयन जो तेज हवाओं और बाढ़ को झेल सकें।
  3. समुद्र तटीय अवसंरचना का सुदृढ़ीकरण — बिजली नेटवर्क, संचार और सड़कें जलवायु-सहिष्णु बनाई जाएँ।
  4. स्थानीय चेतावनी तंत्र का विस्तार — ग्राम स्तर पर सायरन, मोबाइल अलर्ट और सामुदायिक प्रशिक्षण जरूरी।

संदेश को समझ सबक लेना जरूरी

चक्रवात “मंथा” ने एक बार फिर याद दिलाया है कि प्रकृति का हर प्रहार एक संदेश होता है। अगर समय रहते हमने अपने तटीय विकास और ऊर्जा नीतियों को जलवायु-अनुकूल नहीं बनाया, तो आने वाले वर्षों में “मंथा” जैसे तूफान सामान्य बात बन जाएंगे  और तब “आपदा प्रबंधन” नहीं, “जीवन प्रबंधन” सबसे बड़ी चुनौती होगी।


विश्लेषण: आर्यावर्त वाणी डेस्क, पटना | स्रोत: IMD, AP सरकार, Reuters, AP News, ToI


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